वो जिसने परमाणु परीक्षण कर भारत को परमाणु शक्ति बनाया.वो जिसने सेना का शौर्य एवम मनोबल बढ़ा कारगिल विजय दिलाई,वो जिसने यूएन में भी प्रथम बार हिंदी में भाषण दिया.. वो जिसका भाषण प्रारम्भ होने पर चीजें स्वतः ही शांत हो जाती थी.. वो ओजस्वी भाषण जिसका प्रमुख गुण था.वो जिसने तमाम असफलताओं के बाद भी अपना ध्येय नही बदला.... राजनीतिक जीवन मे लगभग 90 प्रतिशत काल में विपक्ष में रहते हुए उसने सदैव सिद्धान्तों के साथ सैद्धान्तिक राजनीति की. वो जिसने न तो कभी वोटों की राजनीति की और कभी नोटों की. तमाम चुनावी असफलाओं के पश्चात भी जिसने उदारता नही छोड़ी,वो कभी तल्ख नही हुए.वो जो इस राजनीति के दलदल में उतर कर भी बेदाग रहा. वो जिसने सैकड़ो काव्य कृतियों से भारतीय जनों को सदैव प्रेरित किया.
वो जिसके अनुसार-भारत जमीन का टुकड़ा नहीं, जीता जागता राष्ट्रपुरुष है। हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है, पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं। पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं। कन्याकुमारी इसके चरण हैं,...
वो जिसका एक भी विरोधी न था.
वो जिसका जीवन लाखों की प्रेरणा है, वो जो जानता था कि दुरूह से दुरूह मुद्दे को जनता के दिल की बात कैसे बनाया जा सकता है, वो जिसको सब स्वीकारते थे और वो जो सबको स्वीकारता था तथा उनमें स्वीकार्यता का दूसरा सबसे बड़ा गुण था..वो जो कभी बदला नही पर सबको बदल गया.वो जिसके बारे में जितना लिखूँ कम है,वो जिसके जीवन मंडल की महिमा मंडित करने की लिए मेरे शब्दकोश में शब्दों की अल्पता है.. वो जो सबको प्रिय था,वो जो केवल एक व्यक्ति नही युग पुरुष था.भारतीय राजनीति का ऐसा कोई लम्हा न था.जब उसको याद न किया गया हो.वो माँ भारती के मस्तक पर दीप्त ओजस्वी सूर्य था. आज वो अस्त हो गया.
दुःखद "अटल बिहारी बाजपेयी" जी आज मौन हैं। काल के कुचक्र ने देश की प्रखरतम वाणी को हमसे छीन लिया... पर उनका व्यक्तित्व सदैव हम सबका जीवन के अग्रिम सफर में मार्ग दर्शन करता रहेगा.. भारत को सदैव आप की अल्पता खलेगी..
अंत मे अटल जी को श्रद्धांजलि उनकी ही कविता से देना चाहूँगा..
ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?
तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।
मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।
पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई।
मौत से ठन गई।
अलविदा "अटल जी" 🙏
वो जिसके अनुसार-भारत जमीन का टुकड़ा नहीं, जीता जागता राष्ट्रपुरुष है। हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है, पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं। पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं। कन्याकुमारी इसके चरण हैं,...
वो जिसका एक भी विरोधी न था.
वो जिसका जीवन लाखों की प्रेरणा है, वो जो जानता था कि दुरूह से दुरूह मुद्दे को जनता के दिल की बात कैसे बनाया जा सकता है, वो जिसको सब स्वीकारते थे और वो जो सबको स्वीकारता था तथा उनमें स्वीकार्यता का दूसरा सबसे बड़ा गुण था..वो जो कभी बदला नही पर सबको बदल गया.वो जिसके बारे में जितना लिखूँ कम है,वो जिसके जीवन मंडल की महिमा मंडित करने की लिए मेरे शब्दकोश में शब्दों की अल्पता है.. वो जो सबको प्रिय था,वो जो केवल एक व्यक्ति नही युग पुरुष था.भारतीय राजनीति का ऐसा कोई लम्हा न था.जब उसको याद न किया गया हो.वो माँ भारती के मस्तक पर दीप्त ओजस्वी सूर्य था. आज वो अस्त हो गया.
दुःखद "अटल बिहारी बाजपेयी" जी आज मौन हैं। काल के कुचक्र ने देश की प्रखरतम वाणी को हमसे छीन लिया... पर उनका व्यक्तित्व सदैव हम सबका जीवन के अग्रिम सफर में मार्ग दर्शन करता रहेगा.. भारत को सदैव आप की अल्पता खलेगी..
अंत मे अटल जी को श्रद्धांजलि उनकी ही कविता से देना चाहूँगा..
ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?
तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।
मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।
पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई।
मौत से ठन गई।
अलविदा "अटल जी" 🙏
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