प्रिय पिताजी, मुझे इस दुनिया मे लाने के लिए मैं आपका कृतज्ञ हूँ.अभी संघर्षशील ही हूँ पर जो भी आज हूँ सब आपकी ही बदौलत हूँ,प्रत्येक पुत्र को अपने पिता से तमाम शिकायतें एवम अपेक्षाएं होती है,मुझे भी हैं,परन्तु मैंने आज तक आपसे कहा नही,पता नही ये सब ज्यादा समझदार होने के कारण है या फिर किसी अन्य कारण वश..या फिर मैं आपके प्रत्येक संघर्ष से वाकिफ हूँ शायद इस लिये नही कहा।युवावस्था में हूँ मतलब अभी संघर्षशील ही हूँ .आपके जीवन से ही सीखने की कोशिश करता हूँ पिता और परिवार के प्रति आपके त्याग एवम समर्पण को देख कर आपके जैसा बनने की प्रेरणा लेता हूँ कुछ भी बनूँ पर व्यक्तिव एवम चरित्र आपके जैसा ही बनाने का प्रयास करता हूँ।कभी कभी अपने भूतकाल में जाने की कोशिश करता हूँ उन तमाम क्षणों में जीने का प्रयास करता हूँ जो भूत में मेरे साथ बीते थे,उन प्रत्येक क्षणों को टटोलने की कोशिश करता हूँ जो मैंने आज तक जियें है क्योंकि वर्तमान की इस जद्दोजहद वाली जिंदगी मे उन पलों को याद करने से ही सबके मन को थोड़ा शांति मिलती है और चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।परन्तु उन पलों को याद करके मेरा मन थोड़ा दुःखी हो जाता है क्योकि आप उन पलों में अनुपस्थित है.उन पलों को तेजी से आगे बढ़ाता हूँ पर आप नही दिखते पता नही ये मेरी अल्प स्मृति क्षमता है या सच मे आप अनुपस्थित थे? मन दुखी हो जाता है जब आपको अपनी स्मृतियों में नही पाता.एक पुत्र के लिए सबसे सबसे बड़ी चीज होती है बचपन मे पिता के साथ बिताए गए पल.. पर उन पलों का अनुभव मैं नही कर सका.. दुख होता है ..मन में दुखों एवम वेदनाओं का एक ज्वार सा आ जाता है... अब आप ही बताइए मेरे पास वो एक भी याद नही जिसमे आप मुझे गोदी में उठाये दुलार कर रहें हो,कंधे पर उठाए मुझे दुनिया से बड़ा होने प्रयास करा रहे हों.. उंगली पकड़ कर मुझे चलना सीखा रहे हो। सच मे पिता जी आपका पुत्र शून्य हो जाता है जब आपको अपने स्वर्णिम क्षणों में नही खोज पाता... भूत के लौट कर प्रयास करता हूँ कहीं तो आपने मुझे संसार अथवा शब्दों का क, ख, ग सिखाया होगा,कहीं तो आपने मेरे बेतुके प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास किया होगा,कभी तो हम साथ मे प्रातः भ्रमण पर गए होंगे,कभी तो आपने मुझे सूर्य के किरणों की तरह दुनिया पर छा जाने की सीख दी होगी,कभी तो आप मुझे साथ मे नहला कर महादेव की पूजा करने ले गए होंगे,कभी तो हमने एक थाली खाना खाया होगा, कभी तो आपने मुझे आपने मुझे अपने पेट पर बिठा कर कहानी सुनाई होगी,कही भी तो हमने साथ मे मिलकर रात में तारों को गिनने की कोशिश की होगी.. । परन्तु ये सब मुझे अपने बचपन की यादों में नही दिखता मन आतुर हो जाता है उस प्यार की आकांक्षा से,आंखे भर आती हैं परन्तु छलकती नही.. छलकती तो तब है जब याद करता हूँ कैसे हम चारो भाई बहन हर शाम आपका इंतजार करते थे ठीक उसी तरह जिस प्रकार पड़ोस के बच्चे अपने पिताजी प्रतीक्षा किया करते थे.. परन्तु उनकी प्रतीक्षा प्रत्येक शाम को उनके पिताजी के आने पर समाप्त हो जाती थी... परन्तु हमारी प्रतीक्षा प्रतीक्षा ही रह जाती थी... न जाने हम भाई बहनों ने कितनी शामें आपके आने की आस के गुजार दी..हम समझ नही पाते थे कि पड़ोस के बच्चों के पिताजी साईकिल के हैंडल में बँधे झोले ने ऐसा क्या लाते थे जो उन्हें प्रसन्न कर देता था।आप साल में दो या तीन बार ही घर आते थे.. मैं समझ सकता हूँ कि आप हमारी खातिर ही घर से इतनी दूर रहे होंगे ताकि आप हमारी शिक्षा एवम सुविधाओं की पूर्ति कर सकें।आज हमारे पास सुचारू रूप से जीवन यापन के लिए पर्याप्त सुविधाएं हैं...परन्तु हमारे पास उन पलों की यादे नहीं है जिन्हें मैं स्मरण कर अपने स्वर्णिम पलों में जी सकूँ न् ही आपके पास वो यादे होगी जिनमे मैं और आप मित्र की भाँति साथ हँसे,खेले अथवा खाये हों.. परन्तु मैं आपका आभारी हूँ उन तमाम क्षणों के बदले में हमेे आपने वो खुशियां दी जिन्हें आज हम जी रहे.. परन्तु मन में एक वेदना तो आ ही जाती है मुझे मेरे बचपन की यादों को याद करके..
अत्यंत मार्मिकता पूर्ण यथार्थ लेख है, पिता सूर्य के समान होते हैं, जिनकी अनुपस्थिति से जीवन में निराशा हताशा रूपी अंधकार बच्चों के मन पर छा जाता है।
ReplyDeleteधन्यवाद महोदय .... अनुभव किया है शायद इसी लिए मेरे लेख में वो भाव उभर कर आ सका..🙏🙏🙏 लेख लिखने का सिर्फ यही उद्देश्य था कि अगर कोई पिता इसे पढ़े तो वो अपने बच्चों को समय देने के लिए प्रेरित हो... आप से भी यही कामना है...
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