पास ही में एक बड़ी कम्पनी की प्रोडक्शन ब्रांच है. एक 15 साल का लड़का(बच्चा) उसमें साफ सफाई का काम करता है. कायदे से उसके पढ़ने और दोस्तों के साथ खेलने के दिन हैं. पर नियति ने उसके साथ कुछ ऐसा नियत किया है कि वो काम कर रहा है, उसकी मजबूरी है.वो छोटा था तो पिताजी गुजर गए .घर पर छोटा भाई हैं,माँ है. कुछ तो करना पड़ेगा.
वो अभी बच्चा है पर किसी तरह उसे काम करने की इजाजत मिल गयी. उसकी नाईट शिफ्ट है. मन लगा के पूरी ईमानदारी से काम करता है. जरूरत भर का तो नही पर थोड़ा बहुत कमा लेता है.
इस भयानक परिस्थिति में भी वो जिनता एडजस्ट कर सकता है करता है और खुश रहने का पूरा प्रयास करता है और कभी खुश रहने का दिखावा भी. ताकि उसके दुःख से उसके नजदीकी लोग दुखी न हों.
रोज की तरह कल भी उसकी नाईट शिफ्ट थी.वही साफ सफाई वाला काम. उसके सहयोगी ने कहा - मैंने कल ये किया था.आज मैं सिर्फ पानी मार दूँगा बाकी का काम तुम कर लेना. उसने कहा- ठीक है.वो थका हुआ तो उसने जाकर थोड़ा सुस्ताने की कोशिश की.
ट्राली जैसी एक वजनदार चीज जो बमुश्किल 3 लोगों से उठती है. उसे खिसकाकर उसने उसपर बैठने की कोशिश की. पर न जाने क्या हुआ उसकी तीन उंगलियां उस भारी ट्राली के नीचे आ गयी.भयानक पीड़ा में मदद के लिए चिल्लाया. उसके साथियों ने मिलकर उसका हाँथ निकाला.
हाथ छूटा तो उसकी तीन उंगलियाँ जमीन पर ही छूट गयी थी. खून से जमीन लाल थी उँगलियों से बेतहाशा खून बह रहा था. वह दौड़ कर अपने दोस्त के पास गया जो उसे,उसकी मजबूरी और उसके दुःखों को जानता और समझता था. उसने उससे कह रखा था कभी कोई छोटी मोटी चोट लगे तो मेरे पास आना,मैं यहीं बगल की लैब में मिलूँगा. फर्स्ट एड बॉक्स है,थोड़ी बहुत मरहम पट्टी कर दूँगा.
पर ये छोटी चोट नही थी बच्चे ने अपनी तीन उंगलियाँ खो दी थी.उसके दोस्त ने जब हथेली देखी तो वह स्तब्ध था. उंगलियाँ कटे हाथ को दूसरे हाँथ की हथेली से थामे उस बच्चे ने अपने दोस्त से पूँछा - उंगलियाँ जुड़ तो जाएंगी न? दोस्त के पास कोई जवाब न था और क्या ही जवाब देता वो कटी हुई उंगलियाँ जुड़ नही सकती.
दोस्त में खून से सनी उसकी उंगलियाँ उठायी. सुपरवाइजर को बुलाया, उसे हॉस्पिटल पहुँचाने के लिए कहा.पास के तीन हॉस्पिटल ने जवाब दे दिया.एक हॉस्पिटल ने तो सीधे इलाज करने से मना कर दिया.चौथे अस्पताल ने इलाज किया.
वो हॉस्पिटल में था तो उसके उसके दोस्त ने आइल घर पहुँच कर उसकी माँ से फ़ोन पर बात कराई. जैसे ही बच्चे की माँ को पता चला कि उसकी उंगलियाँ कट गई है वो फोन पकड़े पकड़े ही बेहोश हो गयी.होश आने पर उसके दोस्त से कहा - बताओ कितना पैसा लगेगा? ठीक से इलाज करा दो मेरे बच्चे का.
इस पूरे वाकये के दौरान वो बच्चा जरा भी नही रो रहा था.इतनी छोटी उम्र में शायद उसने नियति से लड़ते लड़ते भयानक पीड़ाओं को सहना सीख लिया था.उम्मीदों के सहारे जी रहा वो बच्चा हर बार आपने दोस्त की तरफ उम्मीद भरी निगाहों से देखते हुए पूँछ रहा था - ये उंगलियाँ जुड़ तो जाएंगी न? बताओ दोस्त - ये उंगलियाँ जुड़ तो जाएंगी न.
इस दुनिया में अगर सच मे कोई ईश्वर है और दुनिया की तमाम चीजें उसकी मर्जी से घटित होती हैं तो वो ईश्वर क्रूर हैं,उसमें संवेदना नाम की कोई चीज नही हैं और नियति, नियति उस ईश्वर की रखैल है.
वो अभी बच्चा है पर किसी तरह उसे काम करने की इजाजत मिल गयी. उसकी नाईट शिफ्ट है. मन लगा के पूरी ईमानदारी से काम करता है. जरूरत भर का तो नही पर थोड़ा बहुत कमा लेता है.
इस भयानक परिस्थिति में भी वो जिनता एडजस्ट कर सकता है करता है और खुश रहने का पूरा प्रयास करता है और कभी खुश रहने का दिखावा भी. ताकि उसके दुःख से उसके नजदीकी लोग दुखी न हों.
रोज की तरह कल भी उसकी नाईट शिफ्ट थी.वही साफ सफाई वाला काम. उसके सहयोगी ने कहा - मैंने कल ये किया था.आज मैं सिर्फ पानी मार दूँगा बाकी का काम तुम कर लेना. उसने कहा- ठीक है.वो थका हुआ तो उसने जाकर थोड़ा सुस्ताने की कोशिश की.
ट्राली जैसी एक वजनदार चीज जो बमुश्किल 3 लोगों से उठती है. उसे खिसकाकर उसने उसपर बैठने की कोशिश की. पर न जाने क्या हुआ उसकी तीन उंगलियां उस भारी ट्राली के नीचे आ गयी.भयानक पीड़ा में मदद के लिए चिल्लाया. उसके साथियों ने मिलकर उसका हाँथ निकाला.
हाथ छूटा तो उसकी तीन उंगलियाँ जमीन पर ही छूट गयी थी. खून से जमीन लाल थी उँगलियों से बेतहाशा खून बह रहा था. वह दौड़ कर अपने दोस्त के पास गया जो उसे,उसकी मजबूरी और उसके दुःखों को जानता और समझता था. उसने उससे कह रखा था कभी कोई छोटी मोटी चोट लगे तो मेरे पास आना,मैं यहीं बगल की लैब में मिलूँगा. फर्स्ट एड बॉक्स है,थोड़ी बहुत मरहम पट्टी कर दूँगा.
पर ये छोटी चोट नही थी बच्चे ने अपनी तीन उंगलियाँ खो दी थी.उसके दोस्त ने जब हथेली देखी तो वह स्तब्ध था. उंगलियाँ कटे हाथ को दूसरे हाँथ की हथेली से थामे उस बच्चे ने अपने दोस्त से पूँछा - उंगलियाँ जुड़ तो जाएंगी न? दोस्त के पास कोई जवाब न था और क्या ही जवाब देता वो कटी हुई उंगलियाँ जुड़ नही सकती.
दोस्त में खून से सनी उसकी उंगलियाँ उठायी. सुपरवाइजर को बुलाया, उसे हॉस्पिटल पहुँचाने के लिए कहा.पास के तीन हॉस्पिटल ने जवाब दे दिया.एक हॉस्पिटल ने तो सीधे इलाज करने से मना कर दिया.चौथे अस्पताल ने इलाज किया.
वो हॉस्पिटल में था तो उसके उसके दोस्त ने आइल घर पहुँच कर उसकी माँ से फ़ोन पर बात कराई. जैसे ही बच्चे की माँ को पता चला कि उसकी उंगलियाँ कट गई है वो फोन पकड़े पकड़े ही बेहोश हो गयी.होश आने पर उसके दोस्त से कहा - बताओ कितना पैसा लगेगा? ठीक से इलाज करा दो मेरे बच्चे का.
इस पूरे वाकये के दौरान वो बच्चा जरा भी नही रो रहा था.इतनी छोटी उम्र में शायद उसने नियति से लड़ते लड़ते भयानक पीड़ाओं को सहना सीख लिया था.उम्मीदों के सहारे जी रहा वो बच्चा हर बार आपने दोस्त की तरफ उम्मीद भरी निगाहों से देखते हुए पूँछ रहा था - ये उंगलियाँ जुड़ तो जाएंगी न? बताओ दोस्त - ये उंगलियाँ जुड़ तो जाएंगी न.
इस दुनिया में अगर सच मे कोई ईश्वर है और दुनिया की तमाम चीजें उसकी मर्जी से घटित होती हैं तो वो ईश्वर क्रूर हैं,उसमें संवेदना नाम की कोई चीज नही हैं और नियति, नियति उस ईश्वर की रखैल है.
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